एक तरफ जहाँ सारा देश कोरोना की पहली लहर से हलाकान था और करोड़ों मज़दूर पलायन के सैकड़ों मील लंबे रास्ते पर चल चुके थे,
उस बीच सोनू सूद जैसे मसीहा ने हज़ारों लोगों को सुरक्षित उनके घर तक पहुँचाया था।
अनगिनत असंख्य लोगों के भोजन पानी की व्यवस्था की,
हज़ारों बच्चों की शिक्षा का बीड़ा उठाया,
उसको पद्मश्री पद्मभूषण देने के बजाए कायर नपुंसक व्यवस्था ने उसके दफ्तरों में इनकम टैक्स की रेड मारी।
सोनू सूद जैसे उदाहरण बहुत कम हैं, पर कहीं कुछ चूक हो गई शायद,
सोनू से क्या गलती हुई?
सोनू की गलती थी कि उसने आम चूसकर खाने का इंटरव्यू नहीं किया,
उसने एक दल का झंडा उठाने के बजाए देश का झंडा उठाया,
उसने "मन की बात" न सुनकर अपनी आत्मा की आवाज़ सुनी।
लानत है ऐसे कायर राजनैतिक दलों और इसकी ज़िंदाबाद करने वालों पर,
जिनके लिए देश से बड़ी राजनीति है।
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